तर्ज:- तेरे दरबार में आकर
मैं जी भर देखलूँ तुमको, तो दिल को चैन आ जाये,
मगर डरता हूँ साँवरिया, नजर मेरी ना लग जाये ॥
निगाहें क्या मिलाऊँ मैं, निगाहें उठ नहीं पाती,
नजर मिलने से पहले ही, ये आँखे श्याम भर आती
गले मुझको लगालोगे, तो मेरी बात बण जाये ॥
बडी मुद्दत से ख्वाहीश थी, मैं तुमसे कह नहीं पाया
लिये हर बार हसरत ये, तेरे दरबार हूँ आया
बिठालो गोद में अपनी तो रिश्ता खास हो जाये ॥
दया इतनी सी हो मुझपे, मैं काबिल बण सकूं तेरे,
‘दिनू’ दिल हार बैठा हूँ, बनो मन मीत तुम मेरे,
पकडलो हाथ गर मेरा, मजा जिने का आ जाये ॥