
तर्जः बाबुल का ये घर
गुरू आलुसिंहजी की म्हाने याद सतावे है
छोड़ गया भगतां न, म्हारो हियो भर आव है ॥टेर ॥
छोटी सी उमरिया में श्याम को दिवानो बण्यो,
खाटू ने चमन करग्यो जग सारो जाणे,
इब कुण भगत इसो, जो म्हाने बणावे है
गुलाब और केशर की बिरखा करता था,
मालिक के साग दरबार न रंगता था,
इब कुण बाबा पर, बईयां इत्र चढावे है
भरी सभा में थे कीर्तन करता था,
लखदातारी का जैकारा लगाता था,
साँचो है यो दरबार, म्हाने कुण बतावे है
बीच अखाडें मं थे शंका मिटाता था,
दर्दी कोई हो अरदास लगाता था,
इब कुण संकट में, म्हाने धीर बंधावे है
श्याम नाम की क्यूं म्हाने लगन लगाई थी,
जद थानें जाणे की इतनी खताई थी
मन म्हारो लागे ना, कुण राह दिखावे है
खाटू से आता थे, “श्याम मण्डल” के बीच,
श्याम स मिलाता थे दोन्यूँ आँख्या मीच,
खाटू में लगाता दरबार, इब कुण लगावे हैं