तर्ज़ – मौसम है आशिकाना
नैणा मं है निजारो, निर्मोही साँवरै को
मीठो सो वो इशारो, निर्मोही साँवरै को
उल्फत के रंग ल्याई, मस्तान तूं के जाणै,
जिसने भी ठेस खाई ग़म नै वो ही पिछाणै
मोटो मन्नै सहारो, निर्मोही साँवरै को
नैणा मं है नजारो, निर्मोही…
यादां तेरी सुरंगी, हुचक्यां बणी मुरारी,
चरणां मं जा टिकी है आँख्यां नमीं बिचारी
किश्ती को है किनारो, निर्मोही साँवरै को
नैणा मं है नजारो, निर्मोही…
थारै पै जी टिकायो, दूजो नहीं जहां मं,
उळझ्या है प्राण थांसै जाऊँगा इब कहाँ मैं
जी जान सैं भी प्यारो, निर्मोही साँवरै को
नैणा मं है नजारो, निर्मोही…
‘शिव’ श्यामबहादुर की तूं ही तो दिवाली है
वादे को ना भुलाना, पतवार सम्हाली है,
टेढो मिजाज वारो, निर्मोही साँवरै को
नैणा मं है नजारो, निर्मोही…
श्रद्धेय स्व. शिवचरणजी भीमराजका
द्वारा ‘मौसम है आशिकाना’ गीत की
तर्ज़ पर रचित भावपूर्ण श्याम वन्दना