तर्ज – जगत के रंग क्या देखूं
क्यु सजते हो कन्हैया तुम तेरा दीदार काफी है
हमें दीवाना करने को नज़र का वार काफी है
क्यों सजते हो कन्हैयाँ तुम तेरा दीदार काफ़ी हैं।
क्या उबटन केशरी जलवा क्यों चंदन से सजे हो तुम,
की बृज की धुल में जुसरित तेरा तो श्रृंगार काफी है,
क्यों सजते हो कन्हैयाँ तुम तेरा दीदार काफ़ी हैं।
कयुं माथे स्वर्ण मानक और – बहुमुलक मुकुट राखो..2
वो घुंघराले घने केशव , ये मोर की पांख ही काफी है
कयुं सजते हो कन्हैया तुम………
कयु चम्पा मोगरा जुही-बैजन्ती माल गल पेहरो..2
श्री राधा जु की बहियन का ,तेरे गल हार काफी है
कयु सजते हो कन्हैया तुम………..
ना छप्पन भोग की तृष्णा- तुम्हें हरगिज नहीं कान्हा..2
तुम्हें तो तृप्त करने को ,एक तुलसी सार काफी है
क्यूं सजते हो कन्हैया तुम …………
हो मोहक श्यामवर्णी तुम -हो नामा रूप घनश्यामा,,2
तेरी कृपा को बरसाने ,को मन मल्हार काफी है
कयु सजते हो कन्हैया तुम ……….
कभी उर में हुआ गुंजन- कहे कान्हा सुनले पवन ..2
मैं तो बस भावना देखूं,मुझे तो बस प्यार काफी है
कयु सजते हो कन्हैया तुम ,,
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