
तर्ज-कीर्तन की है रात
इबके सावन में तेरा झूला हम घलवाएँगे
तुम्हें झूले में झूलाएँगे
रिमझिम रिमझिम बरसे,ये बरखा रानी,हवा का शोर है
ऐसे में कोयल भी,कुहू-कुहू बोले,मुसकाए मोर है
सावन-भादो की मलहारे हम भी गाएँगे
तुम्हें झूले में झुलाएँगे………..
चंदन की पट्ली पे,रेशम की डोरी का,हिंडोला त्यार करेंगे
रजनीगंधा महकेगी,जूही-चम्पा चहकेगी,फूलों का बंगला साकार करेंगे
अंतर-केसर की हम फुहारे भी उड़ाएँगे
तुम्हें झूले में झुलाएँगे………
मेहँदी मंडायेंगे,तेरा लाड़ लड़ायेंगे,सिन्धारा आप का करेंगे
लाडु और गुड़धानी,रबड़ी घेवर फिणी,मनचाहा भोग धरेंगे
अमोल पसंदीदा कलकत्ता से पान मंगाएँगे
तुम्हें झूले में झुलाएँगे……….