मुझे ये विश्वाश है कन्हैया

मुझे ये विश्वाश है कन्हैया

तर्ज़ – पड़ी भंवर में थी मेरी नैया

मुझे ये विश्वाश है कन्हैया,
करम तुम्हारा, ज़रूर होगा,
तुम्हारी रहमत की, रोशनी से,
अँधेरा हर ग़म का, दूर होगा,
मुझे ये विश्वाश है कन्हैया,
करम तुम्हारा, ज़रूर होगा।

तेरी दया में, कमी ना कुछ थी,
लुटाई तूने, तो खोल के दिल,
अगर ये झोली, है फिर भी खाली,
तो मेरा कोई, कसूर होगा,
मुझे ये विश्वाश है कन्हैया,
करम तुम्हारा, ज़रूर होगा।

तू बेकसों के, दिलो में बसता,
किसी किसी को, ही ये खबर है,
धड़क रहा है, जो मेरे दिल में,
जरूर तेरा ही,नूर होगा,
मुझे ये विश्वाश है कन्हैया,
करम तुम्हारा, ज़रूर होगा।

बेकसों-बेबस, मजबूर, कमजोर।
जो दुख से लड़ कर के, गिर पड़े थे,
सहारा देकर, उठाया तूने,
तू बेकसों की, करे हिफ़ाजत,
क्यों तुम पे, ना फिर गुरूर होगा,
मुझे ये विश्वाश है कन्हैया,
करम तुम्हारा, ज़रूर होगा।

गजे सिंह को, जहान् कन्हैया,
तुम्हारे मंदिर सा, लग रहा है,
तेरी इबादत की, घूँट पी थी,
उसी का शायद, सुरुर होगा,
मुझे ये विश्वाश है कन्हैया,
करम तुम्हारा, ज़रूर होगा।

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