मेरे यार के कोई, सानी नहीं है,
बिना तेरे ये, जिंदगानी नहीं है ।।
मेरा तो तूं ही श्याम, साथी सदा का,
आशिक़ हूँ मैं तेरी, बांकी अदा का,
बिन तेरे कुछ भी, रवानी नहीं है ।।
मेरे यार के कोई, सानी….
है स्वर बांसुरी का, बड़ा ही सुहाना,
दीवाना बना जिसको, सुन के जमाना,
लगी आग दिल की, बुझानी नहीं है ।।
मेरे यार के कोई, सानी….
हकीकत में कैसी, हालत बना ली,
तुम्हारे लिये मैनें, हस्ती मिटा ली,
ये कैसे कहूँ, मेहरबानी नहीं है ।।
मेरे यार के कोई, सानी….
तुम्हारे बिना अब तो, जी ना सकेंगे,
कलेजे के घावों को, सी ना सकेंगे,
लगी दिल की दाता से, छानी नहीं है ।।
मेरे यार के कोई, सानी….
तुम्हें श्यामबहादुर ने, अपना बनाया,
कि नैनों में ‘शिव’ के, कन्हैया समाया,
मिला करके नजरें, चुरानी नहीं है ।।
मेरे यार के कोई, सानी….
सानी = बराबरी का, मुकाबले का
रवानी = प्रवाह, बहाव, गुजर-बसर
छानी = छिपी हुई, अज्ञात
श्रद्धेय स्व. शिवचरण जी भीमराजका
‘शिव’ द्वारा ‘बहुत प्यार करते हैं तुमको
सनम’ गीत की तर्ज़ पर रचित अनुपम
श्याम वंदना ।