भगत कुहाये श्याम धनी को ,जाने सकल जहान जी

भगत कुहाये श्याम धनी को ,जाने सकल जहान जी

तर्ज – जाने वाले इक संदेशा

भगत कुहाये श्याम धनी को ,जाने सकल जहान जी
भजना को इक बाग लगाकर ,बस गयो खाटु धाम जी

मन मंदिर मे मुरत प्रभु की, सदा बिराजै रहती थी
रोम रोम में मुरली उसकी ,राग सुनाया करती थी
नैना माही प्यार को सागर ,नहीं कपट को काम जी
भगत कुहाये श्याम धनी को ,जाने सकल जहान जी।।

नित नया भजन बनाकर लीला,श्याम प्रभु की गाता था
मुरलीधर केशव माधव को ,दिल का हाल सुनाता था
मन माहीं विश्वास घनेरो, दुनिया से नहीं काम जी
भगत कुहाये श्याम धनी को ,जाने सकल जहान जी।।

अंत समय में सावरिये ने,मन इच्छा पुरी कर दी
ज्योति से ज्योति मिलाकर अर्जी,निज चरणा माही धरली
खाटु मांही लगी समाधी,जो की उनकी आश जी
भगत कुहाये श्याम धनी को ,जाने सकल जहान जी।।

श्याम नाम की नींव लगाकर, अखंड ज्योति जगाई है
श्याम बहादुरसदगुरु सांचा,मिलकर महिमा गाई है
शिव की अरज धयान म दिजो,खाटु के घनश्याम जी
भगत कुहाये श्याम धनी को ,जाने सकल जहान जी।।

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