तर्ज – कुण सूनेलो किन सुनावुं
तेरे बिन श्याम अब, रहा नहीं जाये,
दर्द जुदाई का, सहा नहीं जाये।।
व्याकुल है मनवा,चैन नहीं है,
धड़कन ये दिल की बढ़ी जा रही है,
तुझ बिन धीरज, कौन बंधाये…(1)
सावन भादौ,बन गयी अखियाँ,
झलक दिखाके कहाँ,छुप गये छलिया,
प्रियतम प्यारे तेरी,याद सताये…(2)
कैसी ये तू ने, रीत बनाई,
दिल अपना और प्रीत पराई,
क्या कहूँ कुछ भी,कहाँ नहीं जाये…(3)
“बिन्नू” ने तुमसे ही,जोड़ा है नाता,
गुण तेरे गाता, ये तो तुझको रिझाता,
तुझ से मिलन के, सपने सजाये…(4)
तुझ बिन धीरज कौन बँधाए