तर्ज – तावड़ा मन्दो पड़ज्या रै, सूरज बादळ मं छिपज्या रै
साँवरा क्यांमै अटक्यो रै,
म्हारो हुयो हाल – बेहाल,
जीव माया मं भटक्यो रै ।।
अर्थ बिना गाड़ी नहीं चालै,
अटक्या सारा काम,
दुनियादारी हे गिरधारी,
ई बालक नै साम,
छोड़कर क्यांमै सटक्यो रै ।
म्हारो हुयो हाल – बेहाल,
जीव माया मं भटक्यो रै ।।
नहीं मनोरथ पेट भरण को,
लाग्या कितना रोग,
पर पीड़ा दूजो के जाणै,
पूरब जनम का भोग,
कोई नीड़ै नहीं फटक्यो रै ।
म्हारो हुयो हाल – बेहाल,
जीव माया मं भटक्यो रै ।।
रिण नै तार, पार कर नैया,
दे भगती को दान,
थांसै बेसी कुण मिलैगो,
सुणल्यो कृपानिधान,
जियो लालच मं लटक्यो रै ।
म्हारो हुयो हाल – बेहाल,
जीव माया मं भटक्यो रै ।।
‘काशीराम’ श्याम सुण करुणा,
आँसू दीन्ह्या पौंछ,
सिर पर हाथ धरयो जद दाता,
करग्यो दीवाळो कूच,
मोकळो जर ल्या पटक्यो रै ।
म्हारो हुयो हाल – बेहाल,
जीव माया मं भटक्यो रै ।।
क्यांमै = कहाँ, किस में
अर्थ = धन ● साम = सम्हालना
सटक्यो = ओझल या लुप्त होना
नीड़ै = नजदीक, समीप, पास
रिण = ऋण, कर्जा
दीवाळो = दरिद्रता, गरीबी
तार = उतार, समाप्त करना
बेसी = अधिक, ज्यादा
मोकळो = पर्याप्त, अत्यधिक
जर = धन, संपति
श्रद्धेय स्व. काशी राम जी शर्मा द्वारा
‘तावड़ा मन्दो पड़ज्या रै, सूरज बादळ
मं छिपज्या रै’ गीत की तर्ज पर रचित
अनुपम श्याम वन्दना ।