तर्ज़ – मंदिर जाती मीरां, नै, साँवरियो मिल गयो जी
मार निजारो नैण को,
म्हारो जी भरमायो जी ।
श्याम थारो पार ना पायो जी ।।
अँखियां दरशन नै थारै तरसै,
भीतर सैं पण हिवड़ो हरषै,
बाला दे कै राखणो थानै,
कुण सिखायो जी ।। श्याम थारो…
दिन-दिन उंसेर दूणी आवै,
याद काळजो खायां जावै,
लेग्यो मनड़ो लूट के,
म्हारो चैन गँवायो जी ।। श्याम थारो…
कितना ही चाहे लेल्यो टाळा,
श्याम सलूणा खाटू वाळा,
थां मिलणै की आस पर,
यो जीव टिकायो जी ।। श्याम थारो…
जद तांई साँस लगन नहीं छूटै,
याद करै ‘शिव’ मस्ती लूटै,
श्यामबहादुर साँवरै सैं,
नेह लगायो जी ।। श्याम थारो…
बाला = मिथ्या आश्वासन
टाळा = बहाने बनाना, बचना
उंसेर = याद
श्रद्धेय स्व. शिवचरणजी भीमराजका
द्वारा प्रसिद्ध भजन ‘मंदिर जाती मीरां
नै, साँवरियो मिल गयो जी’ की तर्ज़
पर आधारित अनुपम रचना ।