तर्ज – तुझे सूरज कहुँ या चंदा
मेरे सांवल सा गिरधारी मै विनती कर कर हारी
क्यूं नही सुनते हो मेरी . तुने सबकी विपदा टारी
मैं निर्धन हूँ अज्ञानी दुनिया मारे है ताना
दर दर को भटक रहा हूँ नहीं मेरा कोई ठिकाना
मिलती ना मुझको मंजिल राहें हैं बडी अंधियारी
परिवार मेरा छोटा सा मैंने कर दिया तेरे हवाले
जब तूँ ही नजर फेरे तो फिर इसको कौन सम्हाले
कर दो रहमत की वर्षा मुरझाने लगी फूलवारी
पग पग चुभते हैं कांटे रस्ते हैं बड़े दुर्गम जी
अब और सहा नहीं जाता करो दूर सभी दुःख गम जी
कर दो ना फूलो सी कोमल कहे सरला राह हमारी