श्याम थारै क्यांको घाटो जी,
बाबाजी थारै क्यांको घाटो जी ।
कोई दर्शण सैं म्हारा पाप कटै तो,
क्यूँ ना काटो जी ।।
भक्त प्रहलाद भरोसै थारै,
करयो बाप सैं बैर,
असुर संहारण नरसिंह बणग्यो,
करी भगत पर म्हैर,
खम्भ अरडाटै फाट्यो जी ।।
कोई दर्शण सैं म्हारा पाप कटै…
बृजवासी सब आया दौड़ कै,
इंदर सैं डरकै,
बृज नै लियो उबार साँवरो,
नख पर गिरवर धरकै,
नीर को लग्यो ना छांटो जी ।।
कोई दर्शण सैं म्हारा पाप कटै…
नामदेव कै घरां साँवरो,
आयो मार मंडासो,
लक्ष्मी आई संग आपकै,
देखैं लोग तमासो,
भगत को छा दियो टाटो जी ।।
कोई दर्शण सैं म्हारा पाप कटै…
धन्ना भगत को त्याग देखकर,
करयो साँवरो हेत,
बिना बीज निपज्यो मेरा दाता,
थारै भगत को खेत,
धान अणमेदा लाट्यो जी ।।
कोई दर्शण सैं म्हारा पाप कटै…
लाखूं भगत जगत मं तारया,
गिणतां न पायो पार,
बिन भगती कै तारण आओ,
जद जाणां दातार,
करो क्यूँ जिवड़ो काठो जी ।।
कोई दर्शण सैं म्हारा पाप कटै…
ना भगती ना भाव मेरै मं,
सीधी – सादी बात,
भगतां अरज करी थारै सैं,
सुणनी पड़सी नाथ,
कान को खोलो डाटो जी ।।
कोई दर्शण सैं म्हारा पाप कटै…
अरडाटै = गर्जना के साथ
छांटो = छींटा ● मंडासो = सिर पर बांधा
जाने वाला कपड़ा (वजन उठाने के लिये)
तमासो = तमाशा, अचरज
टाटो = टपरी, झोंपडी
निपज्यो = उपजना, पैदावार
अणमेदा = अपार, अत्यधिक
काठो = कंजूस, कठोर
सुप्रसिद्ध राजस्थानी गीत ‘तावड़ा मंदो
पड़ज्या रै, सूरज बादळ मं छिपज्या रै’
की तर्ज़ पर रचित भाव प्रधान प्राचीन
रचना । लेखक – अज्ञात ।
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