श्री कृष्णा कहते है
~ बहुत विनम्रता चाहिए रिश्तों को निभाने के लिए, छल कपट से तो सिर्फ महाभारत रची जाती है।
~ यदि आप किसी के साथ मित्रता नहीं कर सकते हैं, तो उसके साथ शत्रुता भी नहीं करना चाहिए।
~ मनुष्य का जीवन केवल उसके कर्मों पर चलता है, जैसा कर्म होता है, वैसा उसका जीवन होता है।
~ मन अशांत हो तो उसे नियंत्रित करना कठिन है, लेकिन अभ्यास से इसे वश में किया जा सकता है।
~ दिव्यता केवल शक्तिशाली होने में नहीं, बल्कि वास्तविक दिव्यता दूसरों में शक्ति जाग्रत करने में है।