तर्ज़ – घूमर
नानी बाई नै, नरसी मोडो,
देव हिमल्यास ।
साँवळ बीरो ल्यासी मायरो ।।
हिणी क्यूँ ल्यावै बेटी, क्यूँ घबरावै,
राख भरोसो म्हारो, साँवलशाह आवै,
बेटी क्यूँ कर राखी तेरो,
जीवड़ो उदास ।। साँवळ बीरो….
तेरी भौजाई भामा, रुक्मण भी आसी,
जो-2 लिखवाई चीजां, सगळी ही ल्यासी,
म्है तो सगां की चिट्ठी भेजी,
साँवरै कै पास ।। साँवळ बीरो….
साँवरियो ही म्हारो, सुख-दुख को साथी,
टूटी जद गाड़ी आयो, बण कर कै खाती,
आवै मौके पर आडो जो भी,
अपणो हो खास ।। साँवळ बीरो….
नानीबाई सी श्रद्धा, नरसी सी भक्ति,
देखो थे करके मिलसी, चिन्ता सैं मुक्ति,
‘बिन्नू’ पक्को है साँवरियै को,
जीं नै विश्वास ।। साँवळ बीरो….
हिमल्यास = सांत्वना, आश्वासन, भरोसा
हीणी = कमजोरी, उदासी, दुर्बलता
भौजाई = भाभी, भाई की पत्नी
सगळी = सभी, तमाम
श्री बिनोदकुमार जी गाड़ोदिया ‘बिन्नू’
द्वारा सर्वप्रिय राजस्थानी तर्ज़ ‘घूमर’
पर आधारित भावपूर्ण रचना ।