तर्ज़ – गाड़ी वाले, मुझे बिठाले, इकबर गाड़ी थाम
लटक निराली हे वनमाली, कैसे करूँ बखान,
अनोखी झांकी है ।
श्याम बरण रतनारै नैणा, मतवाली मुस्कान,
अनोखी झांकी है ।।
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मोरपंख सिर पर सोहै, झूमर की छवि न्यारी है,
रतन जड़ित गळहार पड्यो, वैजयन्ती मतवारी है,
पागल हंसा बेगो करले, प्रीतम सैं पहचान ।
अनोखी झांकी है ।। लटक निराली, रे वनमाली….
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तकमां झब्बेदार बण्या, चोटी घूँघरवाली है,
फैंटे की फहरन मांही, लहरें नवरंग आली हैं,
ता-ता थैया नाचे मोहन, छेड़ बीन की तान ।
अनोखी झांकी है ।। लटक निराली, रे वनमाली….
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नागराज के मस्तक पे, झूम रहे बृजराज खड़े,
पड़ी तागड़ी मोत्यां की, भाँति-भाँति के रतन जड़े,
नाग सुता आरती उतारे, गावे मंगल गान ।
अनोखी झांकी है ।। लटक निराली, रे वनमाली….
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साँवळशाह गिरधारी का,
देख लिया जिसने जलवा,
गरमा-गरम उड़ा ‘काशी’, श्याम नाम का तूं हलवा,
सुण-2 कर मोहन की महिमा, तड़फन लागै प्राण
अनोखी झांकी है ।। लटक निराली, रे वनमाली….
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श्रद्धेय स्व. काशीरामजी शर्मा द्वारा सुप्रसिद्ध भजन ‘गाड़ी वाले, मुझे बिठाले, इकबर गाड़ी थाम’ की तर्ज़ पर रचित अनुपम भावपूर्ण रचना ।