तर्ज़ – मौसम है आशिकाना
आषाढ़ का महीना ।
माटी के टीबडों में,
सूखे नहीं पसीना ।।
क्या तेरे मन को भाई ढूंढाड़ काहे आया
पर्वत पे जाके कोई आसन न क्यूँ जमाया
है सारी सृष्टि तेरी, तुमको कोई कमी ना
आषाढ़ का महीना, माटी के…
माथे पे पसीने की बूंदें यूँ झिलमिलायें
शबनम के मोती जैसे परिजात को सजायें
तेरी रूप माधुरी ने इस दिल का चैन छीना
आषाढ़ का महीना, माटी के…
आमों के बगीचे में कोयल की कूक गूंजे
मनमस्त मोर मेरा पी के चरण में झूमे
सम्हले नहीं सम्हाले, लहरों में ज्यूं सफीना
आषाढ़ का महीना, माटी के…
सर्दी-बसंत-गर्मी ये सब हैं तेरी माया
कैसे ‘अनिल’ गिनायें,
नहीं पार ‘शिव’ ने पाया,
ढूंढा जहान सारा, तुझसा कोई कहीं ना
आषाढ़ का महीना, माटी के…
आषाढ़ = हिन्दू कैलेंडर का एक महीना
टीबडों = रेत (मिट्टी) के टीले
परिजात = कमल का पुष्प
पी = प्रियतम ● सफीना = जहाज
सुप्रसिद्ध गीत ‘मौसम है आशिकाना’
की तर्ज़ पर मुझे यह भाव लिखने का
सौभाग्य प्राप्त हुआ ।
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