तर्ज़ – कान्हूड़ा लाल घड़लो म्हारो भर दे रे
निर्मोही सेती हेत लगायो जी,
अपणो बणाकै भरमायो जी ।।
सनै-सनै मेरै, चित्त पर चढग्यो,
हिवड़ो बेदर्दी, सैं लड़ग्यो,
कितणो ही ग़म, खायो जी ।।
निर्मोही सेती हेत लगायो…
चोट करै मेरै, मुरली बजाकै,
के फळ पायो, जी उळझाकै,
हो गयो जीव, परायो जी ।।
निर्मोही सेती हेत लगायो…
भूल ना पाऊँ बैंसें, जी बिलमाऊँ,
भाव भरयो हियो, खोल दिखाऊँ,
लाग्योड़ी लगन, निभायो जी ।।
निर्मोही सेती हेत लगायो…
संगत सैं मेरै, लाग्यो चटको,
साँवरियो वासी, घट-घट को,
तूं मेरो जीव, दुखायो जी ।।
निर्मोही सेती हेत लगायो…
श्यामबहादुर, वो अलबेलो,
मनमौजी ‘शिव’, श्याम सुहैलो,
हरष-हरष जस, गायो जी ।।
निर्मोही सेती हेत लगायो…
सनै-सनै = धीरे-धीरे
बिलमाना = बहलाना
लाग्योड़ी = लगी हुई
सुहेल = कोमल
हरष = खुशी, प्रसन्न
श्रद्धेय शिवचरणजी भीमराजका द्वारा
सुप्रसिद्ध भजन ‘कान्हूड़ा लाल घड़लो
म्हारो भर दे रे’ की तर्ज़ पर रचित भाव
भरी रचना ।